सरकार का सेमीकंडक्टर और एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) मिशन तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत ने वर्ष 2030 तक 500 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी, रेल और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बातचीत में जमीनी स्तर किए जा रहे काम और स्थानीयकरण की दिशा में बढ़ाए जा रहे कदमों पर विस्तार से चर्चा की। मुख्य अंश:

सेमीकंडक्टर योजना के तहत सरकार डिजाइन से जुड़ी प्रोत्साहन (डीएलआई) योजना के जरिये देश में चिप डि​जाइनिंग को बढ़ावा दे रही है। इस पर प्रतिक्रिया कैसी रही और कितना काम हुआ है?

हम ऐसे 25 चिपसेट डिजाइन करने के लिए काम कर रहे हैं जहां आईपी (बौद्धिक संपदा) पर भारतीय स्वामित्व होगा। इनमें ऐसे चिप भी शामिल हैं जहां साइबर सुरक्षा संबंधी रोजाना के जोखिम अधिक हैं, जैसे निगरानी वाले कैमरे अथवा वाई-फाई ऐक्सेस पॉइंट में इस्तेमाल होने वाले चिप। डीएलआई योजना के तहत इस क्षेत्र में हमारी 13 ऐसी परियोजनाएं जारी हैं और कुछ में तो अच्छी प्रगति भी हो चुकी है। सभी उपयोगकर्ताओं द्वारा इन चिपसेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। बेंगलूरु का सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग इसकी नोडल एजेंसी है।  जब हमारे पास अपनी बौद्धिक संपदा होती है तो हमें साइबर हमलों से बेहतर सुरक्षा तो मिलती ही है, वह एक उत्पाद भी बन जाता है। 

आपने कॉलेजों और संस्थानों को सहायता देने के लिए एक परिवेश तैयार करने की योजना बनाई थी ताकि हम सेमीकंडक्टर डिजाइन का प्रमुख केंद्र बन सकें। उसकी क्या ​स्थिति है?

हम अच्छी प्रगति कर रहे हैं। हमने 240 कॉलेजों एवं संस्थानों को दुनिया के बेहतरीन डिजाइन-सॉफ्टवेयर टूल उपलब्ध कराए हैं ताकि वे चिप डिजाइन कर सकें। उन टूल्स का उपयोग करते हुए छात्रों द्वारा डिजाइन किए गए पहले 20 चिप को जल्द ही सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला, मोहाली में तैयार किया जाएगा। इससे छात्रों में आत्मविश्वास पैदा होगा कि वे चिप को डिजाइन, सत्यापित और इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर वे ऐसा करेंगे तो खुद ही स्टार्टअप बन सकते हैं। इससे हमें 10 वर्षों में 85,000 इंजीनियरों के साथ प्रतिभा का एक बड़ा भंडार तैयार करने में मदद मिलेगी। 

हाल में आपने इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जों के लिए नई उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) को अधिसूचित किया है? क्या आपको लगता है कि इससे मूल्यवर्धन को बेहतर करने में मदद मिलेगी? 

पिछले 10 वर्षों में हमने देश में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन को 17 फीसदी चक्रवृद्धि दर से 5 गुना और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात को 20 फीसदी से अधिक चक्रवृद्धि दर के साथ 6 गुना बढ़ाया है। इसमें पीएलआई की प्रमुख भूमिका रही क्योंकि उसने इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में 25 लाख अतिरिक्त नौकरियां पैदा की हैं। घरेलू मूल्यवर्धन 20 फीसदी तक बढ़ चुका है। इसकी तुलना आप किसी एक देश के सर्वा​धिक मूल्यवर्धन से कीजिए। किसी भी देश में इसकी अधिकतम सीमा 38 से 40 फीसदी के दायरे में है। उसे 30 वर्षों में हासिल किया गया है मगर हमने 10 वर्षों में 20 फीसदी मूल्यवर्धन हासिल किया है।  

क्या इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए कंपोनेंट पीएलआई घरेलू जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करेगा अथवा वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा होगा?

हम इलेक्ट्रॉनिक्स में आयात के बजाय निर्यात आधारित वृद्धि की मानसिकता तैयार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री हमें ‘मेक इन इंडिया ऐंड मेक फॉर द वर्ल्ड’ यानी भारत में दुनिया के लिए विनिर्माण के लिए प्रेरित करते हैं। हमें बड़े पैमाने पर विनिर्माण करना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों की काफी मात्रा निर्यात के लिए होगी। हम वैश्विक मूल्य श्रृंखला में शामिल होंगे। तेजी से मंजूरियां आदि सुनिश्चित करने के लिए हम राज्य सरकारों के साथ काम कर रहे हैं।

एआई में अगला चरण क्या होगा? क्या आपने उन कंपनियों का पैनल तैयार कर लिया है जो ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स (जीपीयू) के जरिये उच्च कंप्यूटिंग शक्ति उपलब्ध कराएंगी?

पैनल बनाने का अगला दौर जारी है। इस दौर में भी प्रतिक्रिया पहले दौर जितनी ही अच्छी रही है। दूसरे चरण में भी हम पहले दौर की ही तरह जीपीयू खरीद की उम्मीद कर रहे हैं। इसलिए देश में एआई के लिए कंप्यूटिंग शक्ति की कोई कमी नहीं होगी।  एलएलएम (लार्ज लैंग्वेज मॉडल) ऐप्लिकेशन उन्नत चरण में पहुंच गए हैं। पहले चरण में ही 67 कंपनियों से हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। हम कृषि, मौसम विज्ञान, जलवायु और शिक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए खास ऐप विकसित करना चाहते थे। हमने 27 अच्छे ऐप का चयन किया है। हम उन्हें लागू करने के लिए प्रशासनिक मंत्रालयों के साथ काम कर रहे हैं। हमने एक वर्चुअल सेफ्टी इंस्टीट्यूट बनाया है। इस पहल में विभिन्न विश्वविद्यालय शामिल हैं। वे ऐसे तकनीकी टूल विकसित कर रहे हैं जिनका उपयोग एआई जगत में सुरक्षा, जैसे डीपफेक से सुरक्षा एवं किसी मॉडल को अनलर्न करना आदि के लिए किया जाएगा।

डिजिटल निजी डेटा सुरक्षा (डीपीडीपी) अधिनियम पर इंडिया गठबंधन के विरोध के बारे में आप क्या कहेंगे? 

मैं स्पष्ट तौर पर कहना चाहूंगा कि सार्वजनिक डोमेन में रखने के लिए आवश्यक सभी निजी डेटा की आरटीआई के तहत उपलब्धता जारी रहेगी। उदाहरण के लिए, जन प्रतिनिधियों से संबंधित डेटा, सरकारी कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं से संबंधित डेटा आदि। डिजिटल निजी डेटा सुरक्षा अधिनियम के लिए परामर्श की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सभी मुद्दों को निपटाया जा चुका है और जल्द ही उसे प्रकाशित किया जाएगा।