इनकम टैक्स विभाग ने पुराने असेसमेंट मामलों को दोबारा खोलना शुरू कर दिया है। इसका मकसद उन व्यापारियों पर कार्रवाई करना है, जिन्होंने झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए खर्चों के जरिए मुनाफा कम दिखाया और टैक्स से बचने की कोशिश की।

सूत्रों के मुताबिक, कुछ मामलों में विभाग पांच साल पुराने रिकॉर्ड तक की जांच कर रहा है, जहां टैक्स चोरी के पक्के सबूत मिले हैं। खासकर ट्रेडिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंस्ट्रक्शन जैसे सेक्टर की कंपनियों पर शक है कि उन्होंने फर्जी बिलों के जरिए खर्च ज्यादा दिखाया और जीएसटी के तहत गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का फायदा उठाया।

इन कंपनियों ने कथित तौर पर ऐसे फर्जी सप्लायर्स से बिल लिए, जो असल में मौजूद ही नहीं थे। इन्हें आमतौर पर “एंट्री ऑपरेटर” कहा जाता है। टैक्स विभाग अब इन मामलों की जांच तेज़ी से कर रहा है।

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने पहले जिन टैक्स रिटर्न्स को बिना किसी आपत्ति या सवाल के स्वीकार कर लिया था, अब उन्हें दोबारा खोला जा रहा है। इसकी वजह जीएसटी विभाग से मिले कुछ नए सबूत हैं। इन सबूतों से पता चला है कि कुछ कंपनियों ने फर्जी खरीद या नकली बिल दिखाकर अपनी आय को कम बताया है।

सूत्रों के मुताबिक, टैक्स अधिकारी अब डेटा एनालिटिक्स और जीएसटी व इनकम टैक्स रिटर्न्स के बीच मिलान कर ऐसे मामलों की जांच कर रहे हैं।
ऐसे केस इनकम टैक्स एक्ट की धारा 147 के तहत दोबारा खोले जा रहे हैं। इस धारा के तहत अगर विभाग को लगता है कि किसी की टैक्स योग्य आय की सही जांच नहीं हुई या कोई जानकारी छुपाई गई है, तो वह दोबारा असेसमेंट कर सकता है।

आयकर अधिनियम की धारा 148 के मुताबिक, टैक्स विभाग पुराने मामलों को दोबारा खोल सकता है। आम मामलों में यह सीमा संबंधित वित्त वर्ष के अंत से तीन साल तक होती है, जबकि अगर ₹50 लाख से ज्यादा की आय छुपाई गई हो और वह किसी संपत्ति, खर्च या बहीखाते में की गई एंट्री से जुड़ी हो, तो यह अवधि पांच साल तक बढ़ सकती है।

अगर कोई टैक्सपेयर (करदाता) अपने खरीद के लेनदेन को सही दस्तावेजों से साबित नहीं कर पाता है, तो ऐसे खर्च को विभाग फर्जी मान सकता है और उस पर टैक्स के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इस विषय पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) को भेजा गया ईमेल का जवाब खबर प्रकाशित होने तक नहीं मिला।

ध्रुवा एडवाइजर्स के पार्टनर पुनीत शाह ने कहा कि आयकर विभाग और जीएसटी अधिकारी फर्जी खरीद की जांच में एक जैसी ही सोच रखते हैं, खासकर वहां जहां इनपुट टैक्स क्रेडिट वापस ले लिया गया हो।

उन्होंने कहा, “खरीदारों को यह साबित करने के लिए पूरे दस्तावेज देने चाहिए कि उनकी खरीद असली है। केवल जीएसटी कानूनों के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट का रिवर्सल ही आयकर विभाग को यह मानने के लिए काफी नहीं है कि खरीद फर्जी है।”

जीएसटी कानून के तहत पहले से ही मुकदमे का सामना कर रहे कई टैक्सपेयर्स को अब इनकम टैक्स विभाग की तरफ से भी नए नोटिस मिल रहे हैं।

एपीटी एंड कंपनी एलएलपी के पार्टनर अविनाश गुप्ता ने कहा कि कई मामलों में सप्लाई चेन में ज़्यादातर व्यापारी असली होते हैं, लेकिन कुछ गड़बड़ सप्लायर्स की वजह से बाकी ईमानदार कारोबारी भी नुकसान झेल रहे हैं। उन्हें उनके खर्च का दावा करने से इनकार किया जा रहा है।

एडवांटएज कंसल्टिंग के फाउंडर चेतन डागा ने बताया कि टैक्सपेयर्स को यह साबित करना होता है कि उन्होंने जो खरीद की है वो असली है, सामान उन्हें मिला है, और ये बात दस्तावेजों से साबित होनी चाहिए—जैसे ई-वे बिल, गुड्स रिसीव्ड नोट और ट्रांसपोर्ट से जुड़े रिकॉर्ड।