अपनी ही बनाई संस्कृति पर चल रहे श्रीरामतिवारी सब पर भारी
भोपाल। अयोध्या में विराजमान श्रीराम मर्यादा और नियमों से बंधे है, उनके दरबार मे जी भी आता है वह राम की कृपा पाकर कृतार्थ हो जाता है। भोपाल में भी सत्ता के साकेत मे एक श्रीराम विराजमान हैं जिनके लिए नियम, कायदे, मर्यादा आदि कोई मायने नहीं रखते। संस्कृति विभाग में वे अपनी ही बनाई संस्कृति पर अमल करते हैं। दरबार यहां भी लगता है लेकिन तिलक माथा देखकर ही किया जाता है चुनिंदा लोगो को ही तबज्जी दी जाती है। इन कलयुगी राम से उपकृत होने वाले प्रत्यक्ष रूप से भले ही भेंट पूजा न करते हो मगर वे अपने ऊपर किए गए उपकार के बदले दूरगामी लाभ तो अवश्य देते होंगे, यह तय है। एमपी मे सरकारे बदली, निजाम बदला लेकिन संस्कृति विभाग में कुंडली मारकर बैठे श्रीराम को कोई नहीं बदल पाया। उनके पास कोई ऐसा मंत्र जरूर है जिसे कान मे फूंक कर वे प्रत्येक सत्ताधीश को अपने वश में कर लेते हैं। गोस्वामी तुलसी दास ने जो अवताही श्रीराम के लिए लिखी है 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा', संस्कृति विभाग में यह पंक्ति चरितार्थ हो रही है क्योंकि वहां श्रीराम की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता, जो वे चाहते है वही होता है। उनके दरबार में भले ही कोई व्यक्ति ऐसा मौजूद हो जो सर्वथा योग्य, अनुभवी अपने काम मे माहिर, आवश्यक संसाधनों से लैस हो मगर कलयुगी राम की नजर उस पर नहीं पड़ती क्योंकि उनका फोकस सिर्फ चहेतों पर रहता है जो उनकी स्तुति करते रहते है। यही वजह है कि उनके स्टाफ के लोग भी दबी जुबान से यही कहते हैं श्रीराम तिवारी सबपर भारी। उर्दू के एक मशहूर शायर की यह पंक्ति श्रीराम पर फिट बैठती है "उठो कि मेरी बुलंदी का एहतराम करो, सदा ए वक्त हूँ, झुक कर मुझे सलाम करो.
संस्कृति विभाग में श्रीराम तिवारी की अजेय सत्ता के बारे में, हमारे आगामी लेख अवश्य पढ़िये जिसे हम जल्द ही प्रकाशित करेंगे।